Dev ab vardan kaisa - mahadevi varma

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 देव अब वरदान कैसा / महादेवी वर्मा 



देव अब वरदान कैसा!

बेध दो मेरा हृदय माला बनूँ प्रतिकूल क्या है!

मैं तुम्हें पहचान लूँ इस कूल तो उस कूल क्या है!


छीन सब मीठे क्षणों को,

इन अथक अन्वेक्षणों को,


आज लघुता से मुझे

दोगे निठुर प्रतिदान कैसा!


जन्म से यह साथ है मैंने इन्हीं का प्यार जाना;

स्वजन ही समझा दृगों के अश्रु को पानी न माना;


इन्द्रधनु से नित सजी सी,

विद्यु-हीरक से जड़ी सी,


मैं भरी बदली रहूँ

चिर मुक्ति का सम्मान कैसा!


युगयुगान्तर की पथिक मैं छू कभी लूँ छाँह तेरी,

ले फिरूँ सुधि दीप सी, फिर राह में अपनी अँधेरी;


लौटता लघु पल न देखा,

नित नये क्षण-रूप-रेखा,


चिर बटोही मैं, मुझे

चिर पंगुता का दान कैसा!



(सांध्यगीत 1936)

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