Drut jharo jagat ke द्रुत झरो जगत के sumitra nandan pant

Avinash
0

 द्रुत झरो जगत के / सुमित्रानंदन पंत  

द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!

हे स्रस्त-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण!

हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत,

तुम वीत-राग, जड़, पुराचीन!!

निष्प्राण विगत-युग! मृतविहंग!

जग-नीड़, शब्द औ' श्वास-हीन,

च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों-से तुम

झर-झर अनन्त में हो विलीन!

कंकाल-जाल जग में फैले

फिर नवल रुधिर,-पल्लव-लाली!

प्राणों की मर्मर से मुखरित

जीव की मांसल हरियाली!

मंजरित विश्व में यौवन के

जग कर जग का पिक, मतवाली

निज अमर प्रणय-स्वर मदिरा से

भर दे फिर नव-युग की प्याली!


रचनाकाल: फरवरी’१९३४


(युगांत में संकलित)

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)