Bhar dete ho nirala नव प्रभात जीवन में भर देते हो

Avinash
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नव प्रभात जीवन में भर देते हो ।



 भर देते हो

बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से

क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो ।


मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,

कर जाते हो व्यथा-भार लघु

बार-बार कर-कंज बढ़ाकर;


अंधकार में मेरा रोदन

सिक्त धरा के अंचल को

करता है क्षण-क्षण-


कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण

तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो,

नव प्रभात जीवन में भर देते हो ।


- सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

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