बिजली चमकी, पानी गिरने का डर है hindi kavita

Avinash
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 बिजली चमकी, पानी गिरने का डर है



बिजली चमकी, पानी गिरने का डर है

वे क्यों भागे जाते हैं जिनके घर है

वे क्यों चुप हैं जिनको आती है भाषा

वह क्या है जो दिखता है धुँआ-धुआँ-सा

वह क्या है हरा-हरा-सा जिसके आगे

हैं उलझ गए जीने के सारे धागे

यह शहर कि जिसमें रहती है इच्छाएँ

कुत्ते भुनगे आदमी गिलहरी गाएँ

यह शहर कि जिसकी ज़िद है सीधी-सादी

ज्यादा-से-ज्यादा सुख सुविधा आज़ादी

तुम कभी देखना इसे सुलगते क्षण में

यह अलग-अलग दिखता है हर दर्पण में

साथियों, रात आई, अब मैं जाता हूँ

इस आने-जाने का वेतन पाता हूँ

जब आँख लगे तो सुनना धीरे-धीरे

किस तरह रात-भर बजती हैं ज़ंजीरें


- केदारनाथ सिंह

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