Pratham rashmi sumitra nandan pant

Avinash
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 प्रथम रश्मि / सुमित्रानंदन पंत 



प्रथम रश्मि का आना रंगिणि!

तूने कैसे पहचाना?

कहाँ, कहाँ हे बाल-विहंगिनि!

पाया तूने वह गाना?

सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में,

पंखों के सुख में छिपकर,

ऊँघ रहे थे, घूम द्वार पर,

प्रहरी-से जुगनू नाना।


शशि-किरणों से उतर-उतरकर,

भू पर कामरूप नभ-चर,

चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,

सिखा रहे थे मुसकाना।


स्नेह-हीन तारों के दीपक,

श्वास-शून्य थे तरु के पात,

विचर रहे थे स्वप्न अवनि में

तम ने था मंडप ताना।

कूक उठी सहसा तरु-वासिनि!

गा तू स्वागत का गाना,

किसने तुझको अंतर्यामिनि!

बतलाया उसका आना!

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