सतपुड़ा के घने जंगल satpura ke ghane jungle bhavani prasad moshra

Avinash
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            सतपुड़ा के घने जंगल 


                          भवानी प्रसाद मिश्र 

                  【प्रसिद्ध कवि 】


भवानी प्रसाद मिश्र जी हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। भवानी प्रसाद मिश्र दूसरे तार-सप्तक के एक प्रमुख कवि हैं। मिश्र जी विचारों, संस्कारों और अपने कार्यों से पूर्णत: गांधीवादी हैं। गाँधीवाद की स्वच्छता, पावनता और नैतिकता का प्रभाव और उसकी झलक भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। उनका प्रथम संग्रह 'गीत-फ़रोश' अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुआ।


सतपुड़ा के घने जंगल  


सतपुड़ा के घने जंगल।

        नींद मे डूबे हुए से

        ऊँघते अनमने जंगल।


झाड ऊँचे और नीचे,

चुप खड़े हैं आँख मीचे,

घास चुप है, कास चुप है

मूक शाल, पलाश चुप है।

बन सके तो धँसो इनमें,

धँस न पाती हवा जिनमें,

सतपुड़ा के घने जंगल

ऊँघते अनमने जंगल।


                सड़े पत्ते, गले पत्ते,

                हरे पत्ते, जले पत्ते,

                वन्य पथ को ढँक रहे-से

                पंक-दल मे पले पत्ते।

                चलो इन पर चल सको तो,

                दलो इनको दल सको तो,

                ये घिनोने, घने जंगल

                नींद मे डूबे हुए से

                ऊँघते अनमने जंगल।


अटपटी-उलझी लताऐं,

डालियों को खींच खाऐं,

पैर को पकड़ें अचानक,

प्राण को कस लें कपाऐं।

सांप सी काली लताऐं

बला की पाली लताऐं

लताओं के बने जंगल

नींद मे डूबे हुए से

ऊँघते अनमने जंगल।

             

               -भवानी प्रसाद मिश्र

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