चंपा हिंदी कविता Champa kavita by trilochan

Avinash
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  चंपा / त्रिलोचन

 चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है

खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है

उसे बड़ा अचरज होता है:

इन काले चिन्हों से कैसे ये सब स्वर

निकला करते हैं|


चम्पा सुन्दर की लड़की है

सुन्दर ग्वाला है : गाय भैसे रखता है

चम्पा चौपायों को लेकर

चरवाही करने जाती है


चम्पा अच्छी है

चंचल है

न ट ख ट भी है

कभी कभी ऊधम करेती है

कभी कभी वह कलम चुरा देती है

जैसे तैसे उसे ढूंढ कर जब लाता हूँ

पाता हूँ - अब कागज गायब

परेशान फिर हो जाता हूँ


चम्पा कहती है:

तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर

क्या यह काम बहुत अच्छा है

यह सुनकर मैं हँस देता हूँ

फिर चम्पा चुप हो जाती है


उस दिन चम्पा आई , मैने कहा कि

चम्पा, तुम भी पढ़ लो

हारे गाढ़े काम सरेगा

गांधी बाबा की इच्छा है -

सब जन पढ़ना लिखना सीखें

चम्पा ने यह कहा कि

मैं तो नहीं पढ़ुंगी

तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं

वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे

मैं तो नहीं पढ़ुंगी


मैने कहा चम्पा, पढ़ लेना अच्छा है

ब्याह तुम्हारा होगा , तुम गौने जाओगी,

कुछ दिन बालम सँग साथ रह चला जायेगा जब कलकत्ता

बड़ी दूर है वह कलकत्ता

कैसे उसे सँदेसा दोगी

कैसे उसके पत्र पढ़ोगी

चम्पा पढ़ लेना अच्छा है!


चम्पा बोली : तुम कितने झूठे हो , देखा ,

हाय राम , तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो

मैं तो ब्याह कभी न करुंगी

और कहीं जो ब्याह हो गया

तो मैं अपने बालम को संग साथ रखूंगी

कलकत्ता में कभी न जाने दुंगी

कलकती पर बजर गिरे।


- त्रिलोचन

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