Chandani sumitra nandan pant

Avinash
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 चाँदनी /पंत



जग के दुख-दैन्य-शयन पर

यह रुग्णा जीवन-बाला

रे कब से जाग रही, वह

आँसू की नीरव माला!

पीली पड़, निर्बल, कोमल,

कृश-देह-लता कुम्हलाई;

विवसना, लाज में लिपटी,

साँसों में शून्य समाई!

रे म्लान अंग, रँग, यौवन!

चिर-मूक, सजल, नत-चितवन!

जग के दुख से जर्जर-उर,

बस मृत्यु-शेष है जीवन!!

वह स्वर्ण-भोर को ठहरी

जग के ज्योतित आँगन पर,

तापसी विश्व की बाला

पाने नव-जीवन का वर!


-सुमित्रानंदन पंत

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